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नागा साधु और अघोरी साधु - अंतर ?

 


   नागा साधु और अघोरी साधु दोनों ही भारत की धार्मिक और तांत्रिक परंपराओं के महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन इन दोनों के जीवनशैली, साधना पद्धतियों और उद्देश्यों में गहरा अंतर है। इन साधुओं की रहन-सहन और उनकी साधना पद्धतियाँ समाज के सामान्य रीति-रिवाजों से कहीं बाहर होती हैं, और ये दोनों ही अपनी विशेष पहचान रखते हैं। चलिए, हम विस्तार से जानें इन दोनों के बीच के प्रमुख अंतर के बारे में।

नागा साधु: वैराग्य और तपस्या का प्रतीक

    नागा साधु मुख्य रूप से हिंदू धर्म की वैदिक परंपराओं के अनुयायी होते हैं। इनका जीवन पूरी तरह से वैराग्य और भौतिक सुखों से दूर रहने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। वे नग्न रहते हैं या सिर्फ एक कपड़ा पहनते हैं, जो उनकी भौतिक सुखों से विरक्ति को प्रकट करता है। नागा साधुओं का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना, धर्म की रक्षा करना और मोक्ष की प्राप्ति है। ये साधु अधिकतर युद्धकला, योग, और ध्यान में निपुण होते हैं। इनका जीवन तपस्वी होता है, और वे अपने जीवन को समाज के भौतिक सुखों से दूर रखते हुए एक उच्च आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।

    नागा साधु आमतौर पर कुंभ मेले और अखाड़ों में देखे जाते हैं। यहाँ वे धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं और समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं। इन साधुओं के बारे में यह मान्यता है कि वे समाज की रक्षा के लिए हर समय तैयार रहते हैं और कभी भी किसी संकट से जूझने के लिए तैयार रहते हैं।

अघोरी साधु: तंत्र-मंत्र और श्मशान साधना के अनुयायी

    अघोरी साधु अपनी तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध होते हैं। ये साधु श्मशान भूमि में निवास करते हैं और वहां की घनी साधना करते हैं। अघोरी साधु शिव के भैरव रूप के उपासक होते हैं और तंत्र-मंत्र, ध्यान, और श्मशान साधना में निपुण होते हैं। इनकी साधना पद्धतियाँ बहुत रहस्यमय और रहस्यपूर्ण होती हैं, जो समाज के सामान्य लोगों के लिए अस्पष्ट और अशुभ मानी जाती हैं।

    अघोरी साधु अपने शरीर पर शवों की राख लगाते हैं और कभी-कभी मानव खोपड़ी (कपाल) का उपयोग कटोरी के रूप में करते हैं। वे काले वस्त्र पहनते हैं और कभी-कभी निर्वस्त्र रहते हैं। इनकी साधना में शव साधना, शिव साधना, और श्मशान साधना जैसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जो सामान्य समाज के लिए चौंकाने वाली होती हैं।

    अघोरी साधु समाज से अलग रहते हैं और समाज द्वारा उन्हें रहस्यमय दृष्टि से देखा जाता है। अघोरी साधुओं की मान्यता है कि वे मृत्यु के पार जाकर परम सत्य से जुड़ सकते हैं। इनका जीवन मृत्यु से जुड़ी हर चीज में छिपी शक्ति का अहसास कराता है।

भोजन और आहार: भिन्न प्रकार की साधनाएँ

    नागा साधु मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार के होते हैं, लेकिन उनके जीवन में भोजन के लिए कड़े नियम होते हैं। वे दिन में सिर्फ एक बार भोजन करते हैं, और उन्हें केवल सात घरों से भिक्षा मांगने की अनुमति होती है। अगर भिक्षा नहीं मिलती है, तो वे भूखा भी रह सकते हैं।

    वहीं, अघोरी साधु न केवल जानवरों का मांस खाते हैं बल्कि कभी-कभी श्मशान में मुर्दों का मांस भी भक्षण करते हैं। इनकी साधना में कोई भी खाद्य पदार्थ प्रतिबंधित नहीं होता, और वे पूरी तरह से तंत्र-मंत्र की साधना में संलग्न रहते हैं।

गुरु और दीक्षा

    नागा साधु बनने के लिए गुरु की दीक्षा आवश्यक होती है। यह दीक्षा एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव की शुरुआत होती है, जिसमें साधु जीवन की कठिनाइयों और तपस्या को अपनाता है।

    अघोरी साधु के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं होती। वे स्वयं शिव भगवान के अनुयायी होते हैं, और उनके लिए शिव ही सर्वोत्तम गुरु होते हैं। अघोरी साधु अपने साधना के दौरान मृत्यु के पार जाकर आत्मा के रहस्यों को समझने का प्रयास करते हैं।

    नागा साधु और अघोरी साधु दोनों ही अत्यधिक तपस्वी होते हैं, लेकिन उनकी साधना, जीवनशैली और उद्देश्य में बुनियादी अंतर होता है। जहां नागा साधु भौतिक सुखों से दूर रहते हुए आत्मज्ञान की खोज करते हैं, वहीं अघोरी साधु तंत्र-मंत्र और श्मशान साधना में रुचि रखते हैं। दोनों का जीवन एक गहरे आध्यात्मिक उद्देश्य से प्रेरित होता है, जो उन्हें समाज से अलग और विशिष्ट बनाता है।

    यदि आप इन दोनों साधुओं के बारे में और जानना चाहते हैं, तो इनकी साधना और जीवनशैली को जानना आपके ब्लॉग के लिए एक दिलचस्प विषय हो सकता है।

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