वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्ती मनाते हैं, जिसे आखा तीज भी कहते हैं। यह भी खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। अक्ती के दिन खेती का काम शुरू होता है। सुबह किसान भाई लोग दोना में बिजहा धान लेकर ठाकुर देवता को चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इसी दिन से धान बोवाई का मुहूर्त भी होता है। इसके पहले कोटवार से मुनादी कर दी जाती है कि 'छाहूर बंजाय बर चलव हो।' अक्ती के दिन सत्तू, गुड़, आम, शकरकंद और घड़े में पानी भरकर शीतला माता को चढ़ाया जाता है। साथ ही अपने परिवार में सत्तू, गुड़, आम और शकरकंद बांटे जाते हैं। शाम को बच्चे गुड्डी-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। बच्चों का उत्साह देखने लायक होता है।
दशमी के दिन गंगा पूजा पर्व सरगुजा क्षेत्र में मनाया जाता है, जिसे गंगा दशमी भी कहते हैं। आषाढ़ शुक्ला पक्ष द्वितीया को रथ यात्रा मनाई जाती है, जिसे बस्तर में गोमचा के नाम से मनाते हैं। सावन मास अमावस्या को हरेली मनाई जाती है। यह किसानों का मुख्य त्योहार है।
छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। सुबह स्नान कर घर के स्वामी खेती से संबंधित सभी औजारों को धोकर उनकी पूजा करते हैं। खेतों में जाकर पूजा करके धूप जलाते हैं और घर की महिलाएं आंगन को लिपती-बुहारती हैं। साफ-सफाई करके आज के दिन चावल के आटे में गुड़ मिलाकर गुरचीला बनाती हैं पूजा के लिए और सुबह ही पशुधन को आटा, नमक और वन औषधि मिलाकर खिलाती हैं, ताकि पशु निरोग रहें। घर के दरवाजे पर नीम पत्ता लगाया जाता है। इस दिन गेड़ी परंपरा के पीछे एक बात हो सकती है कि सावन के महीने में बारिश के कारण कीचड़ रहता है और घुटनों तक पानी भरा रहता है, इसलिए गोड़ी प्रथा है।
श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी होती है। इस दिन पहलवान कुश्ती का खेल खेलते हैं।
सावन मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और पकवान खिलाती है। यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का त्योहार है और भाई भी अपनी बहनों को उपहार देते हैं।
श्रावण मास के बाद भाद्र या भादों मास आता है। भादों में कृष्ण पक्ष की प्रथमा को भोजली मनाते हैं। भोजली पर्व मित्रता का पर्व है। भाद्र पक्ष की चतुर्थी को संकट चतुर्थी के नाम से मनाते हैं। इसे बहुला चौथ भी कहते हैं, जिसमें गोय और बछड़े की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ में इस दिन माता अपने पुत्र की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य, धन, ऐश्वर्य और उन्नति के लिए संकट चतुर्थी का व्रत रखती हैं। चंद्रमा देखकर पूजा व्रत तोड़ा जाता है।
हलषष्ठी का व्रत भादों मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं महुआ वृक्ष की टहनी का दातून करती हैं। हलषष्ठी व्रत समूह में किया जाता है, माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। हलषष्ठी के लिए लाई, पसहर चावल, कांसी का फूल, बांस निर्मित टोकनी, फूलबत्ती, मिट्टी की चुकिया, श्रृंगार सामग्री, भैंस का दूध, दही, घी, परसा पान का दोना पत्ता आदि से पूजा की जाती है। इस दिन घर के आंगन में गड्ढा खोदकर कृत्रिम तालाब (सगरी) बनाया जाता है, जिसे कांसी के फूल से सजाया जाता है। माताएं अपने घरों से मिट्टी के खिलौने, गेड़ी, शिवलिंग, गौरी-गणेश, कार्तिकेय और नंदी बनाकर लाती हैं। इसे सगरी के घाट में रखकर कलश और फिर बेल पत्र, भैंस का दूध, दही, घी, फूल, लाई, महुआ का फूल आदि चढ़ाकर हलषष्ठी माई की पूजा कर छः कथाएं सुनती हैं और फिर आरती करती हैं। पूजा के बाद माताएं नए कपड़े का टुकड़ा सगरी के जल में डुबाकर घर ले जाती हैं और अपने बच्चों के कमर पर छह बार छूआती हैं, इसे पोती मारना कहते हैं। पूजा के बाद लाई, महुआ और नारियल को आपस में बांटा जाता है। फलाहार के लिए पसहर का चावल, छः प्रकार की भाजी पीतल के बर्तन में बनती है। पलास की टहनी को चम्मच के रूप में प्रयोग किया जाता है। छः प्रकार की भाजियों को खमरछठ मिर्ची और पानी में पकाया जाता है। छौंकने के लिए भैंस के घी का ही प्रयोग किया जाता है। इस भोजन को पहले छः प्रकार के जानवरों जैसे - कुत्ता, बिल्ली, पक्षी, गाय, भैंस और चींटियों के लिए दही के साथ पलास के पत्ते में परोसा जाता है, फिर व्रत करने वाली माताएं भी पलाश के पत्ते पर भोजन करती हैं।
भाद्र पक्ष की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार आता है। इस दिन कृष्ण भगवान को पंजरी, माखन, मिश्री और फलों का भोग लगाते हैं। कृष्ण जन्म उत्सव भी छत्तीसगढ़ में जोर-शोर से मनाया जाता है। दूसरे दिन दही लूट होती है, जिसे दही फोड़ के नाम से भी जाना जाता है।
भादों की अमावस्या को पोला मनाते हैं। इसमें किसान अपने बैलों की पूजा करते हैं, बैलों को सुंदर सजाकर रखते हैं, बैल दौड़ भी होती है। ठेठरी, कुरमी बनाते हैं।
तीज के पहले दिन करू भात, खीरा और नारियल खाते हैं। भादों की तृतीया को हरितालिका मनाते हैं, जो छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्योहार है। सुहागिनें इस दिन अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। कुंवारी कन्याएं भी अच्छे पति की कामना में निर्जला व्रत रखती हैं। महिलाएं चाहे कितनी भी उम्र की हों, मायके जाने के लिए लालायित रहती हैं। रात को सब एकत्र होकर मिट्टी का शिव-पार्वती बनाकर बड़े से परात में रखकर फूलहरा सजाकर श्रृंगार सामग्री, कपड़ा, फल, बेलपत्र आदि से पूजा करती हैं, भजन गाती हैं और रतजगा करती हैं। दूसरे दिन शिव-पार्वती की पूजा कर उन्हें तालाब या नदी में विसर्जित करती हैं और फिर अपना व्रत खुजूर दूध में नींबू डालकर फाड़कर उसमें शक्कर मिलाकर बनाए गए पेय पदार्थ को पीकर व्रत तोड़ती हैं। यह सुपाच्य होता है।
तीज के दूसरे दिन गणेश चतुर्थी होती है। गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं। बच्चे और बड़े उत्साह से गणेश उत्सव मनाते हैं, इसमें रात के समय सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं।
अनंत चतुदर्शी के दिन हवन और महाआरती की जाती है। महाआरती के बाद प्रसाद वितरण होता है। दूसरे दिन विसर्जन किया जाता है।
अनंत चतुर्दश के बाद से पितृपक्ष लग जाता है, इस दिन अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं। नदी में जाकर पितृ तर्पण करते हैं, पिंड दान करते हैं, ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं और दान दक्षिणा देते हैं। पितृ विसर्जन के दिन माघ शुक्ल पक्ष की तृतीया को माघी पूर्णिमा होती है। यह दिन बासी भोजन बनाने का दिन होता है। माघ पूर्णिमा पर व्रत रखकर व्रति विशेष पूजन करते हैं और माघ पूर्णिमा की स्नान विधि का पालन करके व्रत पूरा करती हैं। इस दिन घर के आंगन में बासी खिचड़ी बनाकर उसका तिलक करके उसे गाय, बकरी और कुत्ता को खिलाया जाता है। भोजन के बाद बासी खिचड़ी को वृक्षों की जड़ों में डालते हैं और घर के आंगन की साफ-सफाई करके घर के आंगन में धान, गेंहू आदि से चित्र बनाते हैं, जो 'रंगोली' कहलाता है।
वहीं माघ मास की अमावस्या को सोमवती अमावस्या होती है, जो कि व्रत का दिन होता है। माघ शुक्ल सप्तमी को माघ सप्तमी का व्रत किया जाता है। माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को माघ एकादशी का व्रत मनाते हैं। माघ मास की पूर्णिमा को माघ पूर्णिमा का व्रत होता है।"
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