भारत और वैदिक विज्ञान: षड्दर्शन - सनातन परंपरा के छः दर्शनिक प्रणालियाँ
हिंदू धर्म को समझने के लिए, आपको भारत के प्राचीन दर्शनों के बारे में जानना आवश्यक है। इन दर्शनों ने ही हिंदू धर्म का आधार रखा है और विज्ञान के उन्नति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वर्तमान के विज्ञान का आधार सुकरात और उनके शिष्यों के दर्शन पर निर्भर है, लेकिन भारत में विज्ञान की परंपरा कहीं अधिक प्राचीन है। यहाँ, अलग-अलग दर्शनों ने विकसित होकर अपना अलग-अलग द्रष्टिकोण प्रदान किया है।
विज्ञान का मूल उद्देश्य है पूर्वक लिखे गए दर्शनों को और बेहतर बनाना। किसी भी दर्शन में लिखे गए साहित्य से उत्पन्न प्रश्न विज्ञान को और समृद्ध बनाते हैं।
इस लेख में हम भारत में प्राचीन दर्शनों की बात करेंगे, जिनमें छह प्रमुख हैं।
मूल रूप से अलग-अलग ऋषि और मुनि इन दर्शनों के रचयिता हैं, लेकिन निश्चित तौर पर वेदों की तरह भारतीय दर्शन भी एक एकेडमिक प्रयास है।
वर्तमान साइंस के शब्द "साइंशिया" लेटिन शब्द "सांईशिया" से निकले हैं, जो संस्कृत के "सांख्य" से आया है। इससे स्पष्ट है कि दर्शन शास्त्र की उत्पत्ति और विकास में भारत का महत्वपूर्ण योगदान है।
हिंदू धर्म की समझ के लिए, भारत के प्राचीन दर्शनों के अध्ययन की आवश्यकता है। ये दर्शन ही हिंदू धर्म के मौलिक सिद्धांतों का आधार बनाते हैं, और विज्ञान के उन्नति में भी महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
वर्तमान के विज्ञान का आधार सुकरात और उनके शिष्यों के दर्शन पर निर्भर है, लेकिन भारत में विज्ञान की परंपरा कहीं अधिक प्राचीन है। यहाँ, अलग-अलग दर्शनों ने विकसित होकर अपना अलग-अलग दृष्टिकोण प्रदान किया है।
विज्ञान का मूल उद्देश्य है पूर्वक लिखे गए दर्शनों को और बेहतर बनाना। किसी भी दर्शन में लिखे गए साहित्य से उत्पन्न प्रश्न विज्ञान को और समृद्ध बनाते हैं।
इस लेख में हम भारत में प्राचीन दर्शनों की बात करेंगे, जिनमें छह प्रमुख हैं।
मूल रूप से अलग-अलग ऋषि और मुनि इन दर्शनों के रचयिता हैं, लेकिन निश्चित तौर पर वेदों की तरह भारतीय दर्शन भी एक एकेडमिक प्रयास है।
वर्तमान साइंस के शब्द "साइंशिया" लेटिन शब्द "सांईशिया" से निकले हैं, जो संस्कृत के "सांख्य" से आया है। इससे स्पष्ट है कि दर्शन शास्त्र की उत्पत्ति और विकास में भारत का महत्वपूर्ण योगदान है। मुगल आक्रांताओं के आने के बाद से लेकर वर्तमान समय तक हम अपने उस ज्ञान-विज्ञान और दर्शन शास्त्र से पूरी तरह कट गए। इसकी वजह थी जीवन का संघर्ष और अपनी पहचान को बचाने की जद्दोजेहद। तुलसीदास जी, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती आदि ने समय समय पर इस दर्शन को बचाया।आधुनिक समय में चिन्मयानंद जी, आचार्य श्रीराम शर्मा, स्वामी शरणानंद, ओशो रजनीश, जे.कृष्णमूर्ति, योगानंद परमहंस आदि जैसे कई विचारकों ने इस विचारधारा को पुनर्स्थापित करने के प्रयास किए। हालांकि भारत में ये परंपरा जन सामान्य को सुलभ थी और लोगों की जीवनचर्या का हिस्सा था। यही वजह है कि आज आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में हमारे वैज्ञानिकों को विदेशों में जाकर पहचान मिली। एक समय वो भी था जब दुनिया के अन्य देशों से लोग इस दर्शन को समझने आते थे और अपने-अपने देशों में महान दार्शनिक के रूप में स्थापित होते थे। दुनिया के ज्यादातर दर्शनों में इसीलिए भारतीय पुरातन दर्शन की झलक साफ मिलती है।
इसकी सबसे महत्वपूर्ण वजह है इस दर्शन का बहुत विस्तृत होना। विज्ञान और जन सामान्य के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शास्त्र लिखे गए तो विज्ञान और गणित के गूढ़तम रहस्यों के जवाब देने के लिए भी शास्त्र लिखे गए।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल वही था जो आज भी आधुनिक विज्ञान के लिए अबूझ है। सृष्टि की रचना क्यों और किसलिए हुई? भारतीय दर्शन इस प्रश्न का जवाब बहुत पहले दे चुका है और ऐसे ही सवालों से इस दर्शन शास्त्र का प्रादुर्भाव हुआ था। सांख्य दर्शन ने प्रकृति और पुरुष के सिध्दांत के साथ साथ कार्य कारण का सिध्दांत भी समझाया।
इससे बहुत स्पष्ट हो गया कि कुछ नहीं से कुछ नहीं ही मिलता है। अर्थात् किसी भी उत्पत्ति के लिए कुछ होना आवश्यक है। जो धर्म, कुछ भी नहीं था और ईश्वर की इच्छा से जगत की उत्पत्ति हुई, की बात कहते रहे, वो विज्ञान के इस गूढ़ रहस्य को नहीं छू पाए। इसी तरह विचारकों ने अलग-अलग दर्शन लिखे।
छः दर्शन षडदर्शन का परिचय
इसमें छः दर्शन षडदर्शन के रूप में जाने जाते हैं। इस लेख में इन प्रमुख दर्शनों की सिलसिलेवार जानकारी आपके समक्ष रख रहा हूं। आगे इनमें से हर एक बारे में विस्तार से जानकारियां दी जाएंगी। पहले इन दर्शनों के भेद और मूल तत्व को समझना आवश्यक है। भारत में प्रचलित ये छः दर्शन इस प्रकार हैं-
सांख्य: सांख्य दर्शन के अनुसार, विश्व का उत्पत्ति कार्यकारण संबंध के अद्वितीय ज्ञान से होता है। यह दर्शन प्राकृतिक प्रवृत्तियों और पुरुष के बीच अन्तर को समझाता है।
योग: योग दर्शन में माना जाता है कि मन, शरीर, और आत्मा का एकीकरण आत्मा के मुक्ति की ओर ले जाता है।
न्याय: न्याय दर्शन न्याय, तर्क, और वाद के माध्यम से सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए लोगों को प्रेरित करता है।
वैशेषिक: वैशेषिक दर्शन वास्तु, काल, नियम, और आत्मा के अध्ययन के माध्यम से सत्य की खोज करता है।
मीमांसा: मीमांसा दर्शन वेदों की अध्ययन और वेदों के नियमों की व्याख्या करता है, जिससे कर्मकांड की समझ में मदद मिलती है।
वेदान्त: वेदान्त दर्शन में ब्रह्म के साकार और निराकार परमात्मा की प्राप्ति के लिए आत्मज्ञान की महत्वपूर्णता को बताया जाता है।
ये षड्दर्शन भारतीय दर्शन शास्त्र की आधारशिला हैं, और हर एक का अपना महत्वपूर्ण स्थान है जो मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायक होता है।
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