रोगों का भी निवारण पेड़-पौधे में ईश्वर का वास रोगों का भी निवारण सनातन धर्म में पेड़ पौधों की पूजा करना प्राचीन काल से परंपरा चलती आ रही है। इसमें, केला, तुलसी, बेलपत्र, आंवला, वट वृक्ष, पीपल या छायादार पेड़ हो या कांटेदार सभी वृक्षों की, पौधों की पूजन करने का फल बताया गया है। पेड़-पौधों का पूजन करने से कई प्रकार के रोग दूर होते हैं। हमें पेड़-पौधे आजीवन जन्म से लेकर के जब तक वह समाप्त नहीं हो जाते तब तक कुछ ना कुछ अवश्य प्रदान करते हैं।
तुलसी
तुलसी के पौधे का पत्ता पूजन में चरणामृत में उपयोग लिया जाता है और उसकी लकड़ी को गले में धारण किया जाता है। उसको तुलसी का दान कहा जाता है। उसके आसपास की जहां तुलसी का पौधा लगा हुआ है। वहां की मिट्टी भी बहुत गुणवान होती है। कई रोगों के निवारण के लिए उसका उपयोग किया जाता है। तुलसी की जड़ का गले में धारण करने से कई प्रकार के रोग से मुक्ति मिलती है।
वट वृक्ष
विशालकाय वट वृक्ष की पूजा के बारे में बताया गया है। इसे बरगद भी कहते हैं। इसके दूध को साधुजन अपनी जटाओं में लगाते हैं। इसके कोयले से मंजन बनता है। यह एक हजार वर्ष से भी अधिक तक जीवित रहता है।
पीपल वृक्ष
पीपल में जल चढ़ाने से कई दोषों से मुक्ति मिलती है। दिन में यह ऑक्सीजन छोड़ता है और रात्रि में ग्रहण करता है। इसलिए रात्रि में इसके निकट जाने की मनाही है। साथ ही इसमें नकारात्मक शक्तियों का वास माना जाता है।
केले के पेड़
केले के पेड़ में भगवान जगन्नाथ व बृहस्पति का वास माना गया है। जब जन्म कुंडली में बृहस्पति का दोष हो तो केले या पीपल के वृक्ष का पूजन किया जाता है। ऐसा करने से बृहस्पति का दोष निवारण हो जाता है।
नीम का वृक्ष
नीम के वृक्ष में भैरव और शीतला माता का वास माना गया है। नीम के वृक्ष की पत्तियों का शरीर पर लेपन करने से कई प्रकार के रोग समाप्त होते हैं। मधुमेह की बीमारी में भी इससे लाभ होता है।
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