पंचांग की गणना के अनुसार देखें तो ग्रहों के गोचर में अलग-अलग प्रकार के योग संयोग बनते रहते हैं। इस बार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया पर अलग-अलग प्रकार के योग संयोग बन रहे हैं, क्योंकि इस दिन शुक्रवार और रोहिणी नक्षत्र का संयोग होने से यह शुक्ररोहिणी के योग का अनुक्रम बना रहा है। अर्थात यह अक्षय तृतीया शुक्र रोहिणी के योग में आ रही है। मान्यता के अनुसार, जब कोई भी बड़ा पर्व या त्योहार किसी विशेष नक्षत्र और दिवस की साक्षी में आता है तो उसकी प्रबलता व पुण्यता बढ़ जाती है। शुक्रवार के दिन रोहिणी नक्षत्र का होना श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में विद्यमान रहेंगे।
अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य सफलता के साथ-साथ पदवृद्धि में भी सहायक होता है। इस दिन कोई भी धार्मिक कार्य या पुण्य अक्षय होता है। इसको ध्यान में रखते हुए धर्म कार्य करना चाहिए।
तीन प्रधान ग्रहों की साक्षी में दान का विशेष महत्त्व
सूर्य, सोम, यम, काल ये चार विशेष माने जाते हैं। इनकी साक्षी में किया गया कार्य विशेष रूप से जन्म और जीवन को प्रभावित करता है। संयोग से अक्षय तृतीया के दिन सूर्य का केंद्र योग होने से दानशीलता का प्रभाव बढ़ जाता है। उसमें भी विशेष है कि इस दिन वृषभ राशि पर सूर्य, गुरु, शुक्र यह तीन ग्रह गोचर करेंगे। तीनों ग्रहों का विशेष प्रभाव उनकी प्रधानता को दर्शाता है। इस दिन स्वर्ण, रजत, ताम्र अन्न, धन, वस्त्र आदि दान करने से विशेष धन व पद की प्राप्ति होती है।
सूर्य का केंद्र योग होने से भी पुण्य का विशेष प्रभाव
गुरु, शुक्र में सूर्य का केंद्र योग होने से वह विशेष रूप से प्रबल माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब सूर्य अपनी प्रबलता को या केंद्र को मजबूती से आगे बढ़ाते हुए साक्षी प्रदान करते हैं तो ऐसी साक्षी में धर्म से जुड़े हुए अध्यात्म से जुड़े कार्य अवश्य करने चाहिए। विशेष कर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ-साथ पितरों का भी आवाहन और पितरों की निमित्त दान। यह सभी क्रियाएं विशेष तौर पर करनी चाहिए।
भगवान विष्णु व पितरों के निमित्त करें घट का दान
धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार देखें तो अक्षय तृतीया पर विशेष तौर पर भगवान विष्णु व अपने पितरों के निमित्त दो मिट्टी के घड़े जल से भरकर साफ स्थान पर पूर्व दिशा के प्रमुख कर वहां पर स्वास्तिक बनाएं। स्वास्तिक के ऊपर चावल और एक में गेहूं का उपार्जन करें। उस पर दोनों लाल मटकी या दो लाल मिट्टी के घड़े रख दें। पानी से भरकर इन दोनों में ही पंचामृत डालना है। एक घट भगवान विष्णु का रहेगा व एक घट पितरों का रहेगा। अलग-अलग प्रकार के संकल्पों से ब्राह्मणों को घट का दान करें। इसके साथ-साथ वस्त्र पात्र धान्य भी दान दें। यह करने से पितरों का मोक्ष होता है उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
प्याऊ लगाने का विशेष महत्त्व
भागवत महापुराण के अनुशासन पर्व के आधार पर बात करें तो इस दिन विशेष तौर पर वैशाख मास में पानी पिलाने का विशेष प्रभाव और पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन धर्मस्थलों पर, मंदिरों में, शिवालयों पर, घाटों पर, तीर्थ स्थान पर, मार्गो में जल की प्याऊ लगाना बहुत पुण्य फल देने वाला माना जाता है। प्यासे को पानी पिलाने से पुण्य प्राप्त होता है। पशु पक्षियों के लिए भी जल के सकोरे भरकर रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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