सृष्टि के आदि भी शिव हैं, सृष्टि के मध्य में भी शिव है और सृष्टि का अंत भी शिव हैं। इसलिए सदाशिव को आदि और अनंत कहा जाता है। भोलेनाथ इतने भोले हैं कि भस्मासुर को भी वरदान दे दिया था। जिसने भी भगवान से वर मांगा, उन्होंने तत्काल प्रभाव से उसे दे दिया। शिव सब पर साक्षात अनुग्रह करने वाले हैं। इस सृष्टि के कर्ता भी शिव हैं और शिव ही भर्ता हैं। शिव ही निर्गुण हैं।
आदिकाल से हम देखें तो सभी देवी-देवता, ऋषी मुनि भगवान शिव की पूजा करते आए हैं। ब्रह्मा भी सदैव शिव पूजा करते रहे और शिव की कृपा से ही सृष्टि का निर्माण करते रहे। देव माता अदिति अपनी पुत्रवधुओं के साथ पार्थिव शिवलिंग की पूजा करती रही और देवराज इंद्र भी सदैव शिवजी का पूजन करते रहे। महाराज दशरथ ने विशेष रूप से जब शिव का पूजन किया तो चार पुत्र उन्हें प्राप्त हुए। राजा रामचंद्र जी ने भी सदैव शिव पूजन किया। यहां तक कि जब लंका पर विजय प्राप्त करने से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की।
भोलेनाथ की भक्ति मोक्ष को देने वाली है। मोक्ष धाम के चार व्रत कहलाए हैं, जिसमें शिव पूजा, शिव का मंत्रजाप, शिव मंदिर में उपवास और काशी में मोक्ष प्राप्ति। इनसे भी बड़ा व्रत शिवरात्रि का है। अगर कोई इस व्रत को करता है तो इन्हें मोक्ष धाम के बराबर फल प्राप्त होता है। शिवरात्रि यानी शिव की वह रात्रि जो भोलेनाथ को सबसे ज्यादा प्रिय है। शिवरात्रि भगवान भोलेनाथ की सबसे बड़ी पूजा में से एक है।
शिवरात्रि महापर्व पर रात्रि के चारों पहर में शिवजी के पूजन से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन चार पहर की पूजा करने से व्यक्ति अज्ञानता से ज्ञान की तरफ प्रवेश करता है। इसलिए संभव हो सके तो चारों पहरों में शिवजी की चार पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण से लेकर विसर्जन तक पूजन करने से और रात्रि में प्रेमपूर्वक जागरण महोत्सव करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शिवरात्री सभी प्रकार के मंत्र जाप करने की और मंत्र सिद्धि की रात्रि भी होती है।
शिवरात्रि पर
पहले प्रहर में पंचामृत और दुग्ध से
दूसरे प्रहर में गन्ने के रस से
तीसरे प्रहर में फलों के रस से
चौथे प्रहर में पंचामृत अष्ट द्रव्यों से
भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें। हर पहर में अलग-अलग सुगंधित इत्र भोलेनाथ को अर्पण करें। हर पहर का प्रसाद अलग हो, हर पहर का शृंगार अलग हो, हर पहर की धूप और सुगंध भी अलग हो तो भगवान भोलेनाथ विशेष फल देते हैं।
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