भगवान राम के विषय में तो हम बहुत कुछ जानते है, और उनकी सीखों को अपने
जीवन पर आत्मसात करने के क्रम में अग्रसर है, भगवान राम को राम बनने के
लिए एक रावण का भी होना आवश्यक है, परन्तु क्या आप लंका पतिरावण के बारे
में जानते है ? माना जाता है कि रावण जितना क्रूर और अहंकारी था, उसमें उतनी
ही खूबियां भी थीं। शायद इसीलिए कई बुराइयों के बाद भी रावण को महाविद्वान
और प्रकांड पंडित माना जाता रहा है। यहां पढ़ें, रावण से जुड़ी खास और रोचक
बात कहा जाता है कि
* देवी सरस्वती के हाथ में जो वीणा है, उसका आविष्कार भी रावण ने किया था।
* रावण ज्योतिषी तो था ही तंत्र, मंत्र और आयुर्वेद का भी विशेषज्ञ था।
* लंकेश ने भगवान शिव से युद्ध में हारकर, उन्हें अपना गुरु बनाया था।
* बाली ने रावण को अपनी बाजू में दबाकर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी।
* रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि रावण के दरबार में सारे
देवता और दिगपाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे।
* रावण की अशोक वाटिका में अशोक के एक लाख से ज्यादा वृक्ष थे। इस
वाटिका में सिवाय रावण के किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी।
* रावण जब पाताल के राजा बलि से युद्ध करने पहुंचा तो वहां बच्चों ने ही उसे
पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था।
* रावण जब युद्ध करने निकलता तो खुद बहुत आगे चलता था और बाकी सेना
पीछे होती थी। उसने कई युद्ध तो अकेले ही जीते थे। माना जाता है कि रावण ने
यमपुरी जाकर यमराज को भी युद्ध में हरा दिया था और नर्क की सजा भुगत रही
जीवात्माओं को मुक्त कराकर अपनी सेना में शामिल किया था।
* रावण अति बुद्धिमान ब्राह्मण और शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा
तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी और विद्वान था।
* रावण के गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुए महर्षि वाल्मीकि उसे
चारों वेदों का ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे लिखते हैं, रूप, सौन्दर्य, धैर्य,
कान्ति एवं सर्वगुणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता, तो
यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता। रावण क्रूर-पापी था, तो उसमें शिष्टाचार और
ऊंचे आदर्श वाली मर्यादाएं भी थीं। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में
रावण का उल्लेख प्रमुखता से है।
* राक्षसी कैकसी और ऋषि विश्रवा की संतान होने के कारण सदैव दो परस्पर
विरोधी तड्डव रावण के अन्त:करण को मथते रहे। रावण के दस सिर होने की चर्चा
रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला था एवं एक-
एक दिन क्रमश: एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात् शुक्लपक्ष की
दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है।
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