सनग्लासेज की विकास यात्रा बहुत लम्बी है।जैसे-जैसे समय बीतता गया, इसकी बनावट और गुणवत्ता में सुधार होता गया। सनग्लासेज हमारी आंखों को धूप, धूल से तो बचाते ही हैं, साथ ही इनको पहनने से चेहरा आकर्षक और स्टाइलिश दिखता है। इस समय बाजार में बच्चों-बड़ों के लिए एक से बढ़कर एक लुभावने सनग्लासेज उपलध हैं। सूरज की हानिकारक किरणों से आंखों की सुरक्षा के लिए सबसे पहले लोग हाथी के दांत से बने सनग्लासेज का प्रयोग करते थे। इनके बीच में एकदम पतला हिस्सा छोड़ा जाता था। ताकि सूरज की रोशनी आंखों तक न पहुंच सके, साथ ही लोग जरूरत के हिसाब से बाहर देख सकें। बारहवीं सदी के आसपास चीन ने इनको आगे बढ़ाया और अपडेट करते हुए नए सनग्लासेज लेकर आया। इन में सपाट शीशे का प्रयोग किया गया था, लेकिन ये सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकने में कमजोर थे। उस समय मुख्यत: इनका प्रयोग चीन की अदालतों में जज किया करते थे। वह इन्हें गवाहों से पूछताछ के दौरान पहनते थे ताकि वह अपने चेहरे के हाव-भाव छिपा सकें।
असली बदलाव तो 17 वीं सदी के आस-पास देखने को मिला। वर्ष 1752 में जे्स एसकोफ ने सनग्लासेस में रंगे हुए लेंसों का प्रयोग किया। उन्नीसवीं सदी आते-आते ये आम होने लगे। सन् 1920 में सैम फोस्टर ने अमरीकी जनता के लिए सनग्लासेज पेश किए। इस लेंस को सूरज से आंखों की रक्षा के लिए बनाया गया था। इसके बाद तो जैसे बाढ़ सी आ गई। समुद्री तटों के किनारे ये बिकने लगे। इसके अलावा इस दौर में ये पर्वतारोही-पर्यटकों की खास पसंद भी बने। असल में ये रेगिस्तान की चमक से आंखों की सुरक्षा में कारगर थे। देखते ही देखते ये हॉलीवुड में ग्लैमर का प्रतीक माने जाने लगे। समय की मांग के अनुसार इनकी बनावट में भी कई संशोधन किए गये थे। अब तरह-तरह के डिजाइनर गोल, सपाट आदि ग्लास लेंस फ्रेम के साथ बाजार का हिस्सा हैं।
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