शहद में जितनी मिठास होती है,उतना ही यह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। मधुमक्खियाँ इसको फूलों के मकरन्द से बनाती हैं। मकरन्द में उपस्थित तāवों के कारण शहद के प्रत्येक छत्ते का रंग एवं स्वाद अलग तरह का होता है। मधुमक्खियों के छत्ते में एक रानी मधुमक्खि होती है और शेष श्रमिक। शहद बनाना श्रमिक मधुमखियों की जिम्मेदारी होती है। यह मधुमक्खियां फूलों से मकरन्द इकट्ठा कर अपने छत्ते में एकत्र करती हैं। मधुमक्खियों के लार में मौजूद एक खास एन्जाइम ग्लूकोज को सुक्रोज-फ्रटोज में और ग्लूकोज के एक भाग को ग्ललकोनिक एसिड व हाइड्रोजन पेरॉसाइड में बदल देता है। ग्ललकोनिक एसिड व शहद के पीएच मान को कम कर देता है। इसके कारण जीवाणुओं के पनपने की संभावना कम हो जाती है। हाइड्रोजन पेरॉसाइड भी जीवाणुओं के लिए अनुकूल वातावरण को न पनपने देने का काम करता है। मकरन्द में 30 से 90 प्रतिशत द्रव पदार्थ होता है। शहद निर्माण की प्रक्रिया में वाष्पीकरण के फलस्वरूप इसकी मात्र 18 प्रतिशत रह जाती है। इसके कारण शहद का गाढ़ापन भी बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए मधुमक्खिया मकरन्द की छोटी-छोटी बंूदों को छत्तो के छोटे-छोटे भागों में इकट्ठा करके रखती हैं और अपने पंखों से वाष्पीकरण की गति को बढ़ाती हैं। इस तरह हजारों साल सुरक्षित रहने वाले शहद का निर्माण होता है।
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