खरगोश और कछुए की बहुप्रचलित कथा आपको याद होगी। कछुओं की उम्र भी काफी अधिक होती है। बड़े कछुए दो सौ साल तक जीते हैं। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि कुछ कछुए तीन सौ साल तक जिन्दा रह सकते हैं। कछुए का भारतीय संस्कृति में महāवपूर्ण स्थान रहा है। इसको विशालकाय प्राणी डायनासोर का वंशज माना जाता है। यह वैदिक काल में सूरज का प्रतीक माना जाता था। कछुआ एक धीमी गति से चलने वाला प्राणी है। किंतु यह काफी दूर लगातार चलकर अपनी इस कमी को पूरा कर सकता है।
अब प्रश्न उठता है कि कछुआ इतने वर्षों तक जीवित कैसे रहता है?
दरअसल इसके पीछे मूल कारण है कि यह सब कुछ तसल्ली व धीरे-धीरे करता है। धीरे-धीरे खाता है, इत्मीनान से चलता है और तो और सांस भी धीरेधीरे लेता है। इसकी कड़ी पीठ इसका सबसे बड़ा रक्षा कवच है। और अन्य प्राणियों से इसकी रक्षा करने में पीठ ढाल का काम करती है। कछुआ ठंडे खून वाला जीव है। और ठंड के दिनों में यह समुद्र, नदी की तली, कीचड़ या तालाब के एक कोने में दुबक कर बैठ जाता है। कछुए को काफी कम ऑसीजन की जरू रत होती है, जो उसे आस-पास के कीचड़ में हवा के बुलबुले के रू प में प्राह्रश्वत हो जाती है। कीचड़ में ही उसे आंशिक गर्मी भी मिलती है। कछुआ पानी और जमीन दोनों पर पाया जाता है। समुद्र तटों पर मिलने वाले कछुए आकार में बहुत बड़े होते हैं। समुद्री कछुए छह प्रकार के होते हैं। सबसे भीमकाय समुद्री कछुए का वजन पांच सौ किलोग्राम तक होता है। इसके आगे के पैर तैरने में मदद करते हैं।
समुद्री कछुए समुद्र में इन पैरों की सहायता से काफी तीव्र गति से तैर पाते हैं। जमीन के कछुए पूरी रह स्थलीय होते हैं। और वह केवल नहाने या पानी पीने के लिए जल में जाते हैं। अधिक समय तक इन्हें पानी में छोडऩे पर इनकी मृत्यु हो जाती है। स्थलीय कछुए प्राय: गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। गर्म जलवायु इनके वास्ते काफी अनुकूल होती हैं। इनके पैर भारी शल्कों से ढके होते हैं। गालपागोस द्वीप व सेशेल्स द्वीप के जमीन के विशाल कछुए काफी विख्यात हैं। स्थलीय कछुओं की अब तक करीब चालीस प्रजातियों का पता चला है। इनमें से दो-चार प्रजातियां ही भारत में पाई जाती हैं।
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