च्युइंगम भारत में अधिकतर इसका उच्चारण चिंगम के रूप में करते है, का आविष्कार भले ही अमरीका में हुआ हो पर भारत में कई क्पनियां उच्च कोटि की च्युइंगम का निर्माण करती हैं। साथ ही विदेशों में निर्यात भी करती हैं। वायुयान के यात्रियों को वायुदाब और अन्य असुविधाओं से बचाव के लिए उ्दा किस्म की च्युइंगम दी जाती हैं। मुंह की दुर्गंध को दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। इसे चबाने से दांतों व जबड़ों का अच्छा व्यायाम हो जाता है। चिकित्सकों का मत है कि अधिक मात्रा में च्युइंगम चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। च्युइंगम एक विशेष प्रकार के पेड़ के दूध से बनती है। इसे टेस्ट देने के लिए फ्लेवर और शुगर बाद में मिलाया जाता है।च्युइंगम के स्वाद से दुनिया को परिचित कराने वाले व्यक्ति का नाम है थॉमस एड्स। न्यू जर्सी का यह व्यापारी सापोडिला नाम के पेड़ से प्राह्रश्वत दूध से सिंथेटिक रबर बनाता था। उससे वह खिलौने, मास्क, बरसाती जूते और साइकिल के टायर बनाता था। वर्ष 1869 के एक दिन रबर के एक टुकड़े को उठाकर अपने मुंह में डाला और चबाने लगा। रबर का एक स्वाद एड्स को अच्छा लगा। उसने सोचा यों न इसमें कुछ फ्लेवर मिलाया जाए। अपनी इस सोच को वो सच्चाई में बदलने के लिए जुट गया। इस तरह फरवरी 1871 में च्युइंगम की पहली फैट्री अस्तित्व में आई। वर्ष 1871 में ही एड्स ने इसका पेटेंट अपने नाम करवाया। इसका नाम एड्स न्यूयॉर्क गम रखा गया था। यह पहली च्युइंगम थी, जो वेंडिग मशीन में मिलती थी।यह च्युइंगम मीठी होती थी पर इसमें किसी तरह की कोई खुशबू नहीं होती थी। तब उāारी अमेरिका के एक डेंटिस्ट विलियम रीगल ने इसके स्वरूप और स्वाद में थोड़ा और सुधार किया। इसमें अलग-अलग तरह के फूल और फलों की खुशबू को मिलाकर बाजार में उतारा। इसके बाद डॉटर सी मैन ने च्युइंगम में पैपासीन नामक पदार्थ मिलाया और इसे सुगंधित बना दिया
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